Monday, September 28

Art Vibration - 398



Four Day’s I Did Shared With Theater Art


Friends last week I were shared  my evening time with theater art. Kind  your information  in  my art education I have education of theater art  by format of First Indina theater concept of BHARAT MUNI . BHARAT MUNI was first theater writer of India . His theater concept is base of all Indian theater’s . our Indian theater is completing to definition of Bharat Theater when they play on stage,  a script play in form of theater art . 

By luck I have sense of theater  in  my art vision by art education of visual art. So I have interest in theater  art and when I am visiting to theater art  in that time  I am observing to live play as a theater critic, because I know to definition of theater or the role of theater in our society plus what duty of a theater  art .
 After visit to all kind of theater art I am putting my views about that performance as a art critic . it is in  my art nature  and I am happy to this nature , because I am sharing  my knowledge of theater art with theater artist’s through  my criticism . 

Last week in  my city Bikaner  a theater company ( society ) Anurag kala Kendra was organized a theater festival of four days at Town Hall Bikaner . there I were visited four play’s  in four days . every day one play was performed from stage of Town Hall and every night of that play I were wrote a critical note in Hindi on that play and shared on online network for our world  art family . 

On online someone were taken very rightly to  my art criticism and someone felt something wrong about me because in their view I am painter and I am writing on theater ..hah ha ha ..

For  your notice I want to share that four days criticism of  myself on theater festival of Anurag Kala Kendra  Bikaner .

It is in hindi and its link form my facebook wall page , I sure  you will translate it on online translator .

1 https://www.facebook.com/photo.php?fbid=10206142756622567&set=a.1159622585403.2025211.1072945182&type=3&theater


मित्रों आज अनुराग कला केंद्र का नाट्यसमारोह आरम्भ हुआ साहित्यकार श्री भवानी शंकर व्यास विनोद जी और साहित्यकार श्री लक्ष्मीनारायण रंगा जी की साक्षी में ! रंग लेखक स्वर्गीय श्री निर्मोही व्यास जी को स्मृति में लाते हुए !
आज की प्रथम नाट्य प्रस्तुति रही नाटक * हाथी के दाँत * की जिसे लिखा है रंग लेखक - निर्देशक , एक शब्द में कहूँ तो नाटककार डॉ दयानंद शर्मा ने ! नाटक की पटकथा ( कन्सेप्ट -प्लाट ) सेल्समेन की जीवन यात्रा पर आधारित थी , एक सेल्समेन की आत्मकथा के लिए नाटककार ने कई किरदार और लिखे या रचे नाटक को नाटक बनाने के लिए ! सेल्समेन भी स्मोकर और ड्रिंकर अपने जीवन से हार हुए व्यक्तित्व की आत्मकथा पर आधारित नाटक हाथी के दाँत मुझे, मंच से प्रर्तित हुआ ! महिला कलाकार के साथ एक ही मंच पर सह अभिनेता ने अपशब्द काम में लिए जो सामाजिक दृस्टि कोण से नाट्य का हिसा न भी होता तो बात कही जा सकती थी , दर्शक तक संप्रेषित करने को ! सो एक प्रश्न नाट्य लेखन में उपशब्द के लिखने पर और उन्हें उच्चारित करने पर ! व्यंग के लिए या हास्य रूप में बीप शब्द या परदे के पीछे से बीप ध्वनि को प्रस्तुत किया जा सकता था अपशब्द के स्थान पर जैसे की अन्य दृश्यों में संगीत ध्वनि काम में ली गयी थी !
नाटक हाथी के दाँत नाटक लिखने और नाटक करने के लिए ज्यादा लिखा गया था सामाजिक विचार ठीक से नाटक नहीं दे पाया ! क्यों की हारे हुए इंसान अन्य की बुराई पर खिजयाते से प्रर्तित हुए मंच से ! जबकि वे खुद स्मोकिंग और ड्रिंकिंग के आदि और लतिये नजर आ रहे थे ! ऊपर से उपशब्द के साथ संवाद वो भी महिला कलाकार की सहभागिता में मंच से फूहड़ता और कम घंभीरता की लेखनी के संकेत देरहा था कम से कम मुझे तो औरो की मैं नहीं कह सकता !
कलात्मक पक्ष नाट्य प्रस्तुति का काफी रोचक और मजबूत था कम में ज्यादा देने की रंग कर्मियों की अभिनय से कोशिश पूरी खरी उतरी ! तनाव वाले विषय के नाट्य में हास्य वास्तव में डॉ दयानंद शर्मा को मनोविज्ञान के डॉ के समक्ष लेजाता प्रतीत हुआ ! तनाव में हास्य नाटक को संतुलित करता रहा ! जिसके लिए सभी रंगकर्मी बधाई के पात्र है !
बाकी मंच सझा , प्रकाश व्यवस्था की क्या कहूँ जो मंच खुद सझने से वंचित रहा जिस पर किसी ने ठीक से प्रकाश डालने की कोशिश नहीं की वहाँ का मंच और प्रकाश कैसा होगा आप कल्पना करे अपने मनोयोग से ?
मजबूत रंगलेखन और रंग अभिनय के कारण मंच सझा और प्रकाश व्यवस्था पर ध्यान जाता ही नहीं मेरे जैसे मनोविज्ञानी रंग दर्शक का जब पटकथा संवाद करे मुझ से रंग अभिनेता की अभिनयात्मक ध्वनि में !
कुल मिलाकर मुझे आज फिर से नाट्यकला पर आत्म चिंतन करने का सु अवसर प्रदान करवाने के लिए अनुराग कला केंद्र और उनकी पूरी टीम की … जय हो.....


After first Play  I did criticism on the director cum writer of that play Dr Dayanand Sharma . he was rewrote on  my critical note  in his own words ( he wrote it to me - Thanks #yogendra purohit ji for watching my play "Haathi ke daant" so seriously and sharing your feelings on social media. As I am not habitual of exchanging my ideas on Internet, it will nt be possible for me to satisfy a person like u who is that much concerned for this society as far as abusive language or bad words are concerned in the play 'haathi ke daant' it is very good to think for a great society but is it possible in this hypocritic fashion? I was fully aware about the presence of a lady artist in the play but u should also know that the lady role was being played by My daughter only and it is not such a crime for theatre literature or parallel cinema where such language cannot be avoided to make the things communicative. I'll make sure understand the things fully whenever u want to keep an open debate on this matter. . However, thanks again for becoming my theatre teacher .. .
Regards
DAYANAND SHARMA ) 
Then I were reply to him in  my words ( I wrote it,  back to him - Dr. Dayanand ji ..i am happy if you noticed to my criticism about your play writing /direction and presentation . i have read to theater theory very well . so in that definition your play was giving only a empty feeling to viewers . i came there for collect a life vision but i found from your play only darkness with some cheap words . that is not my culture in society and i not like that society so as a art master of visual art ( i am not theater teacher ) i said that after visit your critical play . that was my view only my view from my art education because i know the duty of a social artist i have got education of it in this art journey.. i don't want to upset to you but i want to ask to you about duty of a true artist ( all kind of artist of our society ) thanks again to you because you noticed my words and input your view in front side of myself ..i hope this talk will on continue for better future of visual art ..best of luck Sir  )


Play performance of Artist Friend Gagan Mishra .Jaipur .2015 .


2 https://www.facebook.com/photo.php?fbid=10206147593303481&set=a.1159622585403.2025211.1072945182&type=3&theater

 मित्रों आज मैं पहले पहल साधुवाद ज्ञापित करना चाहूंगा अनुराग कला केंद्र का क्योंकि उन्होंने मुझे मेरे पुराने मित्र से मिलवाया कला के बहाने कला के क्षेत्र में ! स्वर्गीय श्री निर्मोही व्यास स्मृति नाट्य समारोह के दूसरे दिन आज नाटक की प्रस्तुति जयपुर शहर के रंग निर्देशक श्री गगन मिश्रा ( मित्र ) की रही !
कभी जयपुर के जवाहर कला केंद्र में एक चाय की प्याली में दोनों ही चाय पि लिया करते थे आधी आधी। कभी कप मेरे हाथ होता तो प्लेट गगन के हाथ चाय के साथ और अभी ठीक उल्टा प्लेट मेरे हाथ और कप गगन के हाथ चाय के साथ ! आज चाय से आगे की स्थिति थी पर थी वही ! मंच मेरा बीकानेर का और प्रस्तुति जयपुर के गगन की आधा -आधा मिलकर पूरा हुआ मित्रता का भाव कला के साथ कला के लिए !
मित्र गगन मिश्रा ने नाट्य प्रस्तुति दी * बस अब और नहीं * जिसके रंग अभिनेता थे नन्हे बाल कलाकार और उन्होंने हमारे छोटे रंग मंच को दिया बड़ा ही भव्य रंग मंच का आकर , उनके अभिनय ने किया रंग निर्देशक गगम मिश्रा के निर्देशन को साकार ! नाटक विज्ञान और उसके दुष्प्रभाव का भविष्य कैसा होगा ३०० साल बाद इस पर एक खुला संवाद ही था ! तीखे शब्दों में आने वाली पीढ़ी के द्वारा आज की पीढ़ी पर विज्ञान के नाम पर अज्ञानता के विकास पर व्यंग !
आज के नाटक में प्रकाश व्यस्था रंगकर्मी अशोक जोशी बीकानेर ने दी जिससे रंग निर्देशक गगन मिश्रा और मैं भी संतुष्ट हुआ , क्यों की जैसी प्रस्तुति को प्रकाश व्यवस्था की आवश्यकता थी वैसी प्रकाश व्यवस्था मंच से नाटक को मिली और नाटक से दर्शको को नाटक के विषय को विचारने के लिए ! ( दार्शनिक तत्व वाली बात है )
कम से कम में अधिक प्रस्तुति कल की तरह आज के नाटक में भी बखूबी नजर आरही थी नन्हे कलाकारों ने कई प्रकार के प्रोप काम में लेते हुए असंख्य काल्पनिक दृश्य रचे जो वैसे नहीं थे, पर दर्शक को , कल्पना पटल में वैसे ही प्रर्तित हुए जैसे रंग लेखक और रंग निर्देशक गगन मिश्रा दिखाना चाहते थे !
कुल मिलाकर कम समय में अधिक गहरी और मारकर बात का संकेत देता हुआ बाल नाटक * बस अब और नहीं * अपनी प्रभावी छवि अनुराग कला केन्द्र के मंच से बीकानेर के रंग मंच और रंग मंच से जुड़े बीकानेर के सुधि जनो को कुछ कह गया जो मुझे भी सुनाई दिया * प्रकृति को संरक्षित करो उसका विनाश नहीं। . इस शानदार बालनाट्य प्रस्तुति के लिए रंग निर्देशक मित्र श्री गगन मिश्रा की बीकानेर रंग मंच की और से … जय हो …
एक फोटो कोलाज उस नाट्य प्रस्तुति के पहले और बाद के टाउन हॉल से।

The second play was from  my old friend master GAGAN MISHRA , Jaipur . he was played very well on stage with kids and his child artists were performed very well . so I did promoted to  his play  in  my words .


3 https://www.facebook.com/photo.php?fbid=10206152244659762&set=a.1159622585403.2025211.1072945182&type=3&theater

मित्रों आज अनुराग कला केन्द्र को साधुवाद इस बात के लिए की उन्होंने मुझ छोटे से कलाकार को देश की ख्याति नाम कलाकार संजना कपूर ( पुत्री श्री शशि कपूर और पौत्री श्री पृथ्वी राज कपूर ) से भेंट करने का अवसर प्रदान करवाया और इस अवसर पर मैंने संजना कपूर जी , जो की मेरे फेसबुक मित्र भी हैं उन्हें एक छोटी सी कलाकृति मैंने भेंट की अपनी हाथ से बनी पेंटिंग के रूप में , स्वर्गीय श्री निर्मोही व्यास स्मृति नाट्य समारोह के माध्यम से !
आज तीसरे दिन की प्रस्तुति नाटककार श्री सुधेश व्यास जी की रही ! नाटक भोला भेरू की रस निस्पति के परम चरण और एकरसता को मैं पुरे नाटक में खोजता ही रहा पर वो हर बार टूटती टूटती मुझ तक सम्प्रेषण कर पा रही थी ! या यूँ कहूँ की सही सम्प्रेषण होने में नाटक में बडी भरी चूक हुई थी ! छोटी पटकथा के नाटक को नाटकीय ( राजनैतिक ) जामा पहनाते हुए राजस्थानी और बीकानेरी लोक संस्कृति के कई अन्य आयाम या तत्व नाटक में जोड़े गए जिसकी मुझे आवस्यकता नहीं लगी और थी भी नहीं, पर वो थी नाटक में और नाटक बोजिल होता गया अंत तो गत्वा मैं नाटक के सम्पन होने से पहले ही बाहर आ गया। बीकानेरी जुबान में खेले गए नाटक ने बीकानेर के दर्शक को बीकानेर की छवि तो दिखाई पर मंच से गाली गलोच के उच्चारण प्रश्नवाचक चिन्ह भी छोड़ ते रहे सांस्कृतिक नाटक की प्रस्तुति पर !
नाटक में भवाई नृत्य , कालबेलिया नृत्य और नौटंकी की स्टोरी टेलिंग की तीन अन्य विधा का मिश्रण दर्शक को नाटक की मूल कथा से परे लेते जारहा था और यही कारण था की नाट्य की रस निष्पति न होने के कारण संजना कपूर जी भी , मेरी तरह बीच प्रस्तुति में टाउन हॉल से बाहर आगये थे !
बीकानेर के बीच शहर के रंग कर्मी ( नाटक के अभिनेता ) पुरे आत्मसात होकर बीकानेर की संस्कृति और मानवीय आचरण की प्रतिछवि प्रस्तुत करने में खरे उतरे दर्शक और अभिनेता में या मंच और दर्शक दीर्घा में कोई अंतर ही नहीं रह गया था ! ये प्लस पॉइंट था भोला भैरू नाटक का , अभिनेताओं ने पूरा जोर लगा कर नाटक को बंधना चाहा और नाटक बंधा भी पर मध्य में लोक नृत्य की प्रस्तुति ने उनके प्रयासों पर भी पानी फेरा !

दूसरे दृष्टि कोण से देखू तो यही कहूँगा की आज की नाट्य प्रस्तुति में वे सभी विधाएँ प्रस्तुत की गयी एक ही नाट्य प्रस्तुति के माध्यम से जिन का पूर्ण ज्ञान स्वर्गीय श्री निर्मोही व्यास जी को था और वे अपने नाट्य में इन का उपियोग बखूबी करते थे सो आज की प्रस्तुति के लिए स्वर्गीय श्री निर्मोही व्यास जी सृजन शक्ति की और उनके साथ अनुराग कला केंद्र के जुझारू रंगकर्मियों की भी जोर शोर से … जय हो

In third play director Sudhesh Vyas was changed some element of a script for easiness of Actors and he was played in Rajasthani Language to his play . But in play script he did added some local words that was not part of that play but Director was performed that as a part of play so I did criticism to his play ( Sudhesh vyas was organized that Late Shri Nirmohi vyas memorable theater festival of Bikaner ) 


Photo collage from My Camera , Artist Sanjna Kapoor  at Town Hall Bikaner.  2015
 
4. https://www.facebook.com/photo.php?fbid=10206157203783737&set=a.1159622585403.2025211.1072945182&type=3&theater

मित्रों आज अनुराग कला केंद्र का स्वर्गीय श्री निर्मोही व्यास स्मृति नाट्य समारोह अंतिम नाट्य प्रस्तुति * दुलारी बाई * के साथ सम्पन हुआ ! नाट्य से पहले आज एक अनौपचारिक परिचर्चा रंगमंच की मांग और रंगकर्मियों की आवश्यकता पर रखी गयी ! जिसमे मुंबई से पधारी रंगकर्मी श्री मति संजना कपूर ( मेरे ऑनलाइन मित्र ) ने अध्यक्षता की पर अनौपचारिक रूप से ! परिचर्चा में बीकानेर के रंगमंच के इतिहास और वर्तमान पर बात हुई ! प्रदीप भनागर , दलीप सिंह भाटी, सुरेश शर्मा ,डॉ दयायन्द शर्मा , नवल किशोर व्यास , विकास शर्मा , संजय पुरोहित , शैलेन्द्र सिंह आदि ( सभी मेरे ऑनलाइन मित्र ) ने बीकानेर रंगमंच की वर्तमान स्थिति और समस्या पर अपने तर्क रखे जिसे संजना कपूर जी ने सुने और उनपर संवाद भी किया ! कुल मिलाकर परिचर्चा का सार मुझे ये समझ आया की रंगकर्मियों को ही रंगमंच को जिन्दा रखना होगा अपने प्रयासों से अपने जूनून से !
संजना कपूर जी ने परिचर्चा के बाद अधूरे या निर्माणाधीन रविन्द्र रंगमंच का अवलोकन किया और फिर दुलारी बाई नाटक का मंचन देखा !
आज नाटक काफी हद तक स्वाभाविक स्क्रिप्ट पर चला हिंदी में मारवाड़ी और मारवाड़ी में हिंदी का घालमेल भी स्पस्ट था पर एक दो गाली गलोच के अलावा नाटक पहले की प्रस्तुतियों से काफी साफ़ सुथरा और गतिशील था ! लोक कला के मिश्रण से युक्त नाटक दुलारी बाई ने आज बात जमाई ! सो रंगकर्म की पूरी टीम को मेरे हृदय की गहराई से बधाई !
मंचन के बाद आज काफी देर टाउन हॉल के बाहर खुली हवा में संजना जी ने सभी रंग कर्मियों से बात की फोटो सेशन भी खूब हुआ कई लोगो ने सेल्फ़ी लिए अपने मोबाइल से उस ऐतिहासिक पल को संजोने के लिए !
इस क्रम में मैंने भी कुछ फोटो उस समापन समारोह के लिए अलग अलग पल के संजना जी की उपस्थिति के साथ मेरे मोबाइल से।
समारोह का अंतिम दिन काफी व्यस्त और कलात्मक माहौल में रहा , यूँ कहूँ की नयी ऊर्जा का संचार होने के संकेत मिले आज बीकानेर रंग मंच को संजना कपूर जी की उपस्थिति से, सो आज बीकानेर रंगमंच की पूरी टीम की और से संजना कपूर जी की … जय हो …
कुछ फोटो आज के समारोह के कोलाज रूप में आप के अवलोकन हेतु …

In that theater festival I were felt lucky , when former director of Prithvi theater Msr. Sanjna Kapoor was joined to that theater festival of  Bikaner . Artist Sanjna Kapoor is my online friend so I can say by theater festival I were met to  my online friend cum a senior artist of INDIA . 

Before that meeting to Sanjna Ji I were many time tried at Prithvi  art gallery for a art Exhibition but I could not found any chance. ( i have many rejection letter’s from Prithvi art gallery in  my data files )  because in early time I was not mature about painting exhibition and today Prithvi art gallery is off at Prithvi theater . but I am feeling lucky after 15th years the former director of Prithvi Theater is understanding to  my art sound from  my art work visuals on online  network  .

She is connected to me as a artist friend  so as a artist friend  I were gifted to her a small painting of myself in form of a  art gift or as a memorable movement of our live art meeting at Bikaner. In return gift I were got THANK YOU VERY MUCH words from Artist Sanjna Kapoor Ji for me . 

MySelf  and Msr. Sanjna Kapoor is accepting  my painting gift  from her hand ..at Town Hall Bikaner 2015 , Photo Manish Pareek ... 

I were  gifted this painting to Sanjana Kapoor
I am happy  my artist friend or press Photographer master Manish Pareek  had  saved that gift submission movement from his camera  so a big thanks to him from  my deep heart . 
I were dedicated  my four days evening to theater art of Bikaner with  my full consciousness that consciousness was created a impressive result for better and pure play . 







so here I said about that theater festival -  four day’s I did shared  with theater  art ..

Yogendra  kumar purohit
Master of Fine Art
Bikaner, INDIA

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